विनय के साथ-साथ विवेक भी जरूरी- उत्तम सागर जी



राजेंद्र सिंह
भोपाल

संसार में यदि उठना है तो झुकना सीखो। विनय ही मोक्षमार्ग का द्वार है। यदि शिष्य में विनय है तो वह गुरु का प्रिय बन जाता है। लेकिन विनय के लिए भी विवेक जरूरी है। ऐसा नहीं है यदि जमुनादास मिले तो जमुनादास बन जाओ और यमुनादास मिले तो यमुनादास बन जाओ। विनय तो करना है लेकिन विनय भी विवेकवान होनी चाहिए। यदि आपके जीवन में विवेकपूर्ण विनय है तो आपके जीवन में विकास का कारण बनेगी। आज हम देखते हैं दुनिया में ज्ञान की होड़ लगी है। सब ज्ञान-ज्ञान में लगे हैं। मनुष्य में ज्ञान तो आ गया लेकिन विवेक नहीं आया है। देखा जाए तो मनुष्य से ज्यादा ज्ञानवान पशु है। एक पुलिस चोर को नहीं पकड़ पाती है लेकिन एक श्वान चोर और अपराधी को पकड़ लेता है। एक जानवर मनुष्य से ताकत और बुद्धि दोनों में आगे है। लेकिन उसमें विवेक नहीं है। विवेक के कारण मनुष्य अन्य जीवों की अपेक्षा श्रेष्ठ है। जिसके पास विवेक नहीं है और बुद्धि है तो वह जानवर के सामान ही है। उक्त धर्मोपदेश जैनाचार्य विद्यासागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री उत्तम सागरजी महाराज ने गुना के चौधरी मोहल्ला स्थित महावीर परिसर में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। इस अवसर पर बड़े महाराजश्री प्रसाद सागरजी महाराज भी मंचासीन थे। इसके पूर्व प्रात: दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट उपरांत आचार्यश्री की पूजा हुई। धर्मसभा में मुनिश्री ने कहा कि भगवान और गुरु पर विश्वास मत रखो। भगवान और गुरु के वचनों पर विश्वास रखो। उन पर आस्था और उनके वाचनों पर विश्वास होगा तो तुम्हारे जीवन का उद्धार होगा ।

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