राजेन्द्रसिंह
भोपाल
भजन का भाव जागृत करने के लिए पुराने ऋषि मुनि सुदूर जंगलों में प्राकृतिक वातावरण में ही रहते थे। कुछ सन्त आज भी कोलाहल से दूर एकान्त में रहकर भजन पूजन करते हैं।
गुना जिले के बीनागंज कस्बे के समीप आज भी एक ऐसा आश्रम है जो आधुनिकता से पूरी तरह से मुक्त है। यहाँ बिजली का कनेक्शन तक नहीं है तो बाकी सुविधाओं का अंदाजा लग सकता है। पिछले दिनों भक्तों ने कुटिया का फर्श पक्का करवा दिया था तो गुरुजी बड़े नाराज हुए थे।
इस आश्रम की स्थापना करीब 50 वर्ष पूर्व एक शिक्षक श्रीकृष्ण शर्मा ने किन्हीं केरल से यहाँ आये हुए सन्त रामचन्द्र दास जी के लिए की थी। आश्रम से जुड़े हुए रिटायर्ड शिक्षक हरिनारायण मेहरा ने बताया कि ग्राम बिजनीपुरा के कृषक रघुवीरसिंह मीणा ने आश्रम बनाने के लिए निशुल्क जितनी चाहिए उतनी जमीन दान में देने को कहा था। सन्त ने मात्र आधा बीघा जमीन ही ग्रहण की। करीब 20- 25 वर्षों तक केरल वासी सन्त यहाँ रहे। उसके बाद वे कहीं अन्यंत्र चले गए।
उनके जाने के बाद स्व श्रीकृष्ण शर्मा यहाँ भजन करते रहे। पहले यह स्थान बीनागंज से गुना की ओर लगभग 1 किमी दूर पड़ता था लेकिन अब आबादी यहां तक पहुंच चुकी है।
आश्रम में पेड़ों की घनी छाया है। सांप, बिच्छु, गोहरा जैसे खतरनाक जीव यहाँ निर्भय होकर विचरते हैं। आश्रम में एक कुंआ, चबूतरे पर शिव परिवार और एक झोपड़ी नुमा मिट्टी का कमरा भर है। रात को चिमनी या दीपक जलाया जाता है। चूल्हे पर लकड़ियों से भोजन बनता है। आश्रम में चुनिंदा भक्त ही आते हैं। जिनमें मूलचन्द कुशवाह रिटायर्ड डिप्टी रेंजर, पीतम मीणा, रघुवीरसिंह के पौत्र रमेश मीणा, शिक्षक कृष्ण गोपाल मीणा आदि हैं।
आश्रम की थीम आज भी वही है पूर्णतया प्राकृतिक सुरम्य वातावरण। सात्विक भाव से भगवत भजन।