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9 जून को भगवान बिरसा मुंडाजी की शहादत दिवस पर कोल जनजाति महासम्मेलन, विधायक शरद कोल ने ली बैठक



शहडोल। बीजेपी विधायक शरद जुगलाल कोल ने 9 जून को ब्यौहारी में भगवान बिरसा मुंडाजी के शहादत दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित होने वाले कोल जनजाति महासम्मेलन की तैयारियों को लेकर शहडोल में बैठक ली।
बैठक में भगवान बिरसा मुंडाजी के शहादत दिवस पर होने वाले इस ऐतिहासिक आयोजन को भव्य रूप देने के लिए विभिन्न कार्य योजनाओं पर विचार-विमर्श किया गया।
इस दौरान अमित कोल, शोभलाल कोल, संतोष कोल, मयाराम कोल, अरुण कोल, पप्पू कोल सहित बड़ी संख्या में समाजन उपस्थित रहे।

भगवान बिरसा मुंडा का जीवन और संघर्ष
भारत के समृद्ध इतिहास में भगवान बिरसा मुंडा का नाम एक वीर योद्धा और समाज सुधारक के रूप में अंकित है, जिन्होंने अपना जीवन आदिवासी समाज के उत्थान और अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया। हर साल 15 नवंबर को उनकी जयंती को भारत में राष्ट्रीय आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन न केवल उनकी शहादत और योगदान का स्मरण है, बल्कि आदिवासी समुदाय की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, निरंतर संघर्ष और स्वाभिमान का उत्सव भी है।
भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलिहातु गांव में एक साधारण मुंडा परिवार में हुआ था। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा था और उन्हें छोटी उम्र से ही आर्थिक संघर्षों का सामना करना पड़ा। सामाजिक असमानता, उत्पीड़न और विदेशी शासकों द्वारा जनजातियों के निरंतर शोषण ने बिरसा मुंडा के दिल में विद्रोह की भावना भर दी। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा थोपी गई ज़मींदारी प्रथा, जबरन धर्म परिवर्तन और आदिवासी लोगों के पारंपरिक जीवन पर अत्याचारों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भगवान बिरसा मुंडा का योगदान अद्वितीय है। वे न केवल अपने स्थानीय जनजातियों के नेता थे, बल्कि उन्होंने अपने “उलगुलान” आंदोलन के माध्यम से अन्य आदिवासी समुदायों को संगठित होने और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि वे 9 जून, 1900 को मात्र 24 वर्ष और 7 महीने की छोटी उम्र में शहीद हो गए, लेकिन उनकी विरासत आदिवासी समुदायों के दिलों में आज भी जीवित है क्योंकि उन्हें एक महान क्रांतिकारी नेता के रूप में याद किया जाता है।

उलगुलान आंदोलन का नेतृत्व
बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन और उनके अत्याचारों के खिलाफ “उलगुलान” आदिवासी विद्रोह का नेतृत्व किया। “उलगुलान” का अर्थ है ‘महान विद्रोह।’ इस आंदोलन का उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भूमि नीतियों, जबरन धर्मांतरण और जनजातियों की पारंपरिक जीवन शैली में हस्तक्षेप करने वाले कानूनों के खिलाफ आवाज उठाना था। भगवान बिरसा मुंडा के नेतृत्व में, इस आंदोलन ने पूरे क्षेत्र में जन क्रांति की लहरें पैदा कीं, जिससे उन्हें “धरती आबा” या “धरती पिता” (पृथ्वी पिता) जैसी उपाधियाँ मिलीं।

समाज सुधारक के रूप में योगदान
भगवान बिरसा मुंडा न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक महान समाज सुधारक भी थे। उन्होंने आदिवासी समाज में व्याप्त बुराइयों जैसे अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव, मादक द्रव्यों के सेवन और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाई। उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षा के महत्व पर जोर दिया और एकता का उपदेश दिया। बिरसा मुंडा ने “बिरसाईत” नामक एक धार्मिक आंदोलन भी शुरू किया, जिसमें अपने अनुयायियों को आचरण की शुद्धता, सादगी और सच्चाई का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस की स्थापना
वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में 15 नवंबर को राष्ट्रीय आदिवासी गौरव दिवस के रूप में घोषित किया। इसका उद्देश्य बिरसा मुंडा और अन्य आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का सम्मान करना है। इस दिन देश भर में आदिवासी समाज की सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और गौरवशाली इतिहास को समझने और मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह दिन आदिवासी समुदायों के संघर्षों और योगदानों को याद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

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