बिना लक्ष्य के आराधना में मंजिल नहीं मिलती: मुनि रजतचन्द्रविजय



-श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में
शास्वत नवपद ओलीजी आराधना

झाबुआ 26 अक्टुबर 2020 । दिशा के अभाव में व्यक्ति तथ्यहीन बाते करता है । जिस आराधना का लक्ष्य ना हो आराधक को कभी भी मंजिल की प्राप्ति नहीं होती है । हमें आराधना को सरल एवं सुन्दर बनाना है । निश्चित दिशा का चयन हो, उचित स्थान तय हो व निश्चित समय पर मंत्रों का जाप आराधना में होना चाहिये । साथ ही मन में एकाग्रता के भाव होगें तभी आराधना सफल होगी । साधना में तन और मन की शुद्धि अति आवश्यक है । मन में किसी प्रकार के कषाय के भाव नहीं आना चाहिये तभी सिद्धचक्र की आराधना संसार के चक्र से मुक्ति प्रदान कर पाती हैं । बड़े-बड़े भवनों में सुख शांति नहीं मिलती पर सुख शांति प्राप्त करने का मार्ग व्यक्ति को मंदिर व उपाश्रय के माध्यम से ही प्राप्त होता है । उक्त बात वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न प्रवचनदक्ष मुनिराज श्री रजतचन्द्र विजयजी म.सा. ने प्रवचन में कही और कहा कि नवपद औलीजी आराधना में आराधक आहार का नियंत्रण, विचार का नियंत्रण व व्यवहार का नियंत्रण रखता है । तभी सिद्धचक्र औलीजी आराधना आराधक को तन और मन से सुखी करती है । मुनिश्री ने कहा कि मनुष्य चार प्रकार के होते है । आत्मारम्भी, परारम्भी, उभरारम्भी, निरारम्भी और श्रावक तीन प्रकार के होते है नाम श्रावक, द्रव्य श्रावक और भाव श्रावक । चतुर्थ दिन मुनिश्री ने श्रीपाल ओर मयणासुन्दरी चरित्रों पर विस्तृत रुप से प्रकाश डाला और व्याख्या की । आज आराधकों ने नवपद आराधना ओलीजी के चौथे दिन नमो उव्वज्झायाणं पद की आराधना की । इस पद के 25 गुण होते है इसका वर्ण हरा रंग का होता है । प्रवचन में उपाध्याय श्री यशोविजय जी म.सा., उपाध्याय श्री विनयविजयजी म.सा., उपाध्याय श्री मोहनविजयजी म.सा. उपाध्याय उदयरत्न जी आदि को वंदना की गई और इनके द्वारा अर्जित व प्रदत्त ज्ञान का गुण गान भी किया गया ।
उक्त जानकारी जैन श्वेतांबर श्री संघ की सुश्राविका श्रीमती श्यामुबाई रुनवाल ने दी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *