Valentine’s Day पर उर्दू शायर मिर्जा गालिब की शायरी



नई दिल्ली. Valentine’s Day पर उर्दू शायर मिर्जा गालिब की इश्क को लेकर लिखी गई शायरी का आनंद लें। मिर्जा गालिब की इश्किया शायरी का इस्तेमाल तो हर प्यार करने वाले ने अपनी जिंदगी में कभी न कभी किया ही होगा क्योंकि कम शब्दों में मारक बात कहना मिर्ज़ा की आदत थी

 

इश्क़ ने ‘गालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के

उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

इश्क पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘गालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

तुम सलामत रहो हजार बरस
हर बरस के हों दिन पचास हजार

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिजार होता

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