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नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश की सियासत में नई इबारत लिखी जा रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को मात देने लिए 23 साल पुरानी दुश्मनी भुलाकर सपा-बसपा सूबे में एक बार फिर गठबंधन की राह पर हैं. 1993 में राम मंदिर आंदोलन पर सवार बीजेपी को हराने वाली मुलायम-कांशीराम की जोड़ी की तरह मोदी लहर पर सवार पार्टी को हराने के लिए अखिलेश-मायावती की जोड़ी बन रही है. हालांकि 1993 से लेकर 2019 तक गंगा-गोमती और यमुना में बहुत पानी बह चुका है. यही वजह है कि माया-अखिलेश वाले इस गठबंधन के लिए 25 साल पहले जैसे नतीजे दोहराना बड़ी चुनौती माना जा रहा है.
SP-BSP गठबंधन में ऐसे हुआ सीट बंटवारा
अखिलेश यादव और मायावती कांग्रेस को अलग रखकर सूबे में गठबंधन कर रहे हैं. इसकी घोषणा शनिवार को दोनों नेता अपनी ज्वाइंट कॉफ्रेंस में कर सकते हैं. सीट शेयरिंग फॉर्मूला भी तभी सामने आएगा. माना जा रहा है कि सपा 36 और बसपा 37 सीट पर चुनाव लड़ेगी. आरएलडी के लिए 3 सीटें जबकि पीस पार्टी, निषाद पार्टी जैसे दलों के लिए 2 सीटें रिजर्व रखी जा सकती हैं. अमेठी और रायबरेली सीट पर गठबंधन अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगा.
सपा-बसपा के गठबंधन के बाद राजनीतिक पंडित मानकर चल रहे हैं कि बीजेपी के लिए सूबे की राह आसान नहीं होगी. इसके लिए वो 1993 में सपा-बसपा गठबंधन का उदाहरण दे रहे हैं, लेकिन मौजूदा सियासी माहौल को अगर राजनीतिक और जातीय समीकरण के मद्देनजर देंखे तो 25 साल पहले जैसे हालात आज नहीं हैं.
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