भोपाल के अस्पताल में हर साल 8 सौ नवजात तोड़़ रहे हैं दम



  • स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट में कई बार लिटाने पड़ते हैं दो-दो बच्चे, औसतन हर दिन 2 से 3 जानें जाती हैं

  • डॉक्टर नवजातों की मौत को बता रहे नॉर्मल, कहा- हम अमेरिका में नहीं रहते कि हर बच्चे को बचा सकें

भोपाल. नवजात शिशुओं की मौत के मामले में मप्र की स्थिति भी बेहद चिंताजनक है। भोपाल के सिर्फ हमीदिया अस्पताल की ही बात करें तो यहां 30 बेड के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) है, इसमें हर साल 4 हजार से ज्यादा नवजात बच्चे भर्ती होते हैं। इसमें से 8 सौ से ज्यादा बच्चे दम तोड़ देते हैं। यानी हर दिन 2 से 3 बच्चों की मौत हो जाती है। इन डरावने आंकड़ों को शिशु रोग विभाग के डॉक्टर सामान्य बताते हैं। वह कहते हैं कि हम अमेरिका में नहीं रहते हैं कि हर बच्चे को बचा सकें।

हमीदिया अस्पताल के कमला नेहरू अस्पताल में हर महीने एसएनसीयू में बेड ऑक्यूपेंसी 150 फीसदी से ज्यादा होती है। कभी-कभी एक ही वार्मर पर दो बच्चों को भी लिटाना पड़ता है। यहां भर्ती होने वाले 50 फीसदी नवजात बच्चे सुल्तानिया अस्पताल से आते हैं। बाकी भोपाल के प्राइवेट अस्पताल, जिला अस्पताल के साथ ही राजगढ़, रायसेन, विदिशा, होशंगाबाद, इटारसी, गुना और अन्य जिलों से रेफर होकर आने वाले होते हैं। अब तक यहां 10 नर्सिंग स्टॉफ की कमी थी, जिसे पिछले महीने ही भर्ती की गई है।

मौत की प्रमुख वजह : हमीदिया शिशु रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. ज्योत्सना श्रीवास्तव ने बताया कि हमारे यहां हर साल 4 हजार से ज्यादा नवजात बच्चे भर्ती होते हैं। इसमें 22 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है। एनसीसीयू में ऑक्यूपेंसी रेट कुछ महीनों में बढ़ जाता है। इसकी वजह है कि ग्रामीण अंचलों से रेफर किए गए बच्चे आखिरी वक्त पर हमारे पास आते हैं। नवजात के मौत की सबसे बड़ी वजह- रेस्पिरेटरी डिस्टर्बेंस सिंड्रोम (आरडीएस) और प्री-मिच्योर डिलिवरी (पीएमडी) होती है।

जेपी अस्पताल में नवंबर-दिसंबर में 22 बच्चों की मौत
इधर, भोपाल जिला अस्पताल (जेपी अस्पताल) के हालात भी ठीक नहीं हैं। यहां के एसएनसीयू में भर्ती हुए 200 बच्चों में नवंबर-दिसंबर में 22 नवजात की मौत हो चुकी है। हर साल 1200 से ज्यादा बच्चे यहां पर भर्ती होते हैं। 1 जनवरी से दिसंबर तक 1246 बच्चों को भर्ती कराया गया। इसमें से 120 से ज्यादा बच्चों ने दम तोड़ दिया।

मप्र में प्रति हजार बच्चों में 32 बच्चे नहीं पूरा कर पाते महीना
प्रदेश में जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में 32 बच्चे 29 दिन के पहले और 55 बच्चे जिंदगी का पांचवां साल नहीं देख पाते। देश के 21 बड़े राज्यों में यह मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। ये खुलासा राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर नीति आयोग की ताजा रिपोर्ट से सामने आया है। स्वास्थ्य से जुड़े 23 इंडिकेटर्स के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में मप्र 17वें स्थान पर है। इसमें सबसे पीछे यूपी, बिहार, उड़ीसा हैं।

नीति आयोग ने ‘हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव इंडिया’ नाम से जून 2019 में जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग तय की है। रैंकिंग तय करने के लिए रिपोर्ट में, शिशु मृत्यु दर (एनएमआर) और 5 वर्ष से कम बच्चों की मृत्यु दर (यूएमआर) को भी एक प्रमुख पैमाने के रूप में शामिल किया है। नवजात बच्चों (29 दिन के पहले) की मौत के मामले देखें तो 21 राज्यों में प्रदेश 55 बच्चों के साथ आखिरी पायदान पर है।

100 में से हर 7वें बच्चे का वजन भी कम
नवजात शिशु के लिए वजन का मानक 25 सौ ग्राम रखा गया है। वजन के लिहाज से सबसे स्वस्थ बच्चे जम्मू कश्मीर में पैदा होते हैं। जबकि, मप्र में 7 फीसदी यानी 100 में से हर सातवां बच्चा कमजोर वजन का पैदा होता है। यह आंकड़ा अपने आप प्रदेश में कुपोषण की कहानी कह रहा है। सौ. दैनिक भास्‍कर

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