राजेन्द्र सिंह मीणा,भोपाल।
गुना जिले में रक्षाबंधन त्यौहार को विशेष ढंग से मनाया जाता है। जिन लोगों का ताजा ताजा विवाह हुआ होता है वे पूरे गांव के लिए उपहार /गिफ्ट लेकर आज के दिन अपनी ससुराल पहुंचते हैं। जमाई राजा द्वारा लाई गई वस्तुएं प्रत्येक परिवार को भेँट की जाती है। कुछ वर्षों पूर्व तो ग्राम चोपन कला के एक शिक्षक अपने ससुरालियों के लिए सूटकेस लेकर गए थे। ट्रेक्टर ट्राली में सूटकेस लादकर जब दामादजी ससुराल पहुंचे होंगें तो नजारा देखने लायक होगा।गर्मियों में जिन जोडों का विवाह हुआ होता है उनकी पत्नियाँ राखी बाँधने अपने मायके चली जाती हैं। जमाई राजा भी रक्षा बंधन वाले दिन अपने घर में दोपहर तक राखी बांध-बंधवाकर यात्रा की तैयारी प्रारम्भ कर देते हैं। उनके साथ दोस्त, छोटे भाई, चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई भी मेहमानी करने जाते हैं। किसी जमाने मे 8 – 10 लोग मेहमानी करने जाते थे। अब संख्या घट कर दो तीन लोगों तक सिमट गई है। पहले एक हफ्ता तक वहीं डटे रहना साधारण बात थी वहीं अब बमुश्किल तीन या चार दिन ही टिक पाता है।ससुराल में छोटे साले सालियों और भतीजों के लिए कपड़े खिलोने मिठाई फल आदि खरीदे जाते हैं। अपनी नव वधू के लिए नए कपड़ों सहित सम्पूर्ण श्रंगार खरीदा जाता है। ससुराल के गांव में जितने भी परिवार होते हैं उनके लिए एक-एक बटुआ, रुमाल पंच मेवा, बताशे, मिठाई खरीद कर ले जाते हैं। शाम तक गांव में लोग उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं कि अमुक गाँव के दामाद आ गए हैं। अगले दिन खवास जमाई राजा द्वारा लाई गई गिफ्ट पूरे गाँव में बाँटता है। अगले दिन भुजरियों का जुलूस निकलता है तो सजनी अपने साजन द्वारा लाये गए नए कपड़े, गहने पहनकर इतराती डोलती हैं। उनकी कुंवारी सहेलियां भी कल्पना करती हैं कि अगले साल कोई उनके लिए इससे भी अच्छे वस्त्र आभूषण लेकर आएगा।भुजरियों के दिन सारा गाँव जमाइयों को भुजरिया बान्धकर विदाई रूप में नकद या कोई वस्तु उपहार में देता है। जन्माष्टमी तक इन नये पाहुनों, मिजबानों या मेहमानों के निमंत्रण का दौर चलता रहता है। विदाई में ढेर सारे प्यार, नगदी, कपड़ें, आभूषण आदि गिफ्ट के साथ अपनी नव वधु और ससुराल वालों की मधुर यादों को यादों में बसाकर पाहुने अपने घर लौट जाते हैं। इस प्रकार से नए नए रिश्तेदार बने व्यक्ति का अपने ससुराल के सभी जाति वर्ग के लोगों से स्नेह का एक अटूट बन्धन स्थापित हो जाता है।
गुना जिले में रक्षाबंधन त्यौहार को विशेष ढंग से मनाया जाता है। जिन लोगों का ताजा ताजा विवाह हुआ होता है वे पूरे गांव के लिए उपहार /गिफ्ट लेकर आज के दिन अपनी ससुराल पहुंचते हैं। जमाई राजा द्वारा लाई गई वस्तुएं प्रत्येक परिवार को भेँट की जाती है। कुछ वर्षों पूर्व तो ग्राम चोपन कला के एक शिक्षक अपने ससुरालियों के लिए सूटकेस लेकर गए थे। ट्रेक्टर ट्राली में सूटकेस लादकर जब दामादजी ससुराल पहुंचे होंगें तो नजारा देखने लायक होगा।गर्मियों में जिन जोडों का विवाह हुआ होता है उनकी पत्नियाँ राखी बाँधने अपने मायके चली जाती हैं। जमाई राजा भी रक्षा बंधन वाले दिन अपने घर में दोपहर तक राखी बांध-बंधवाकर यात्रा की तैयारी प्रारम्भ कर देते हैं। उनके साथ दोस्त, छोटे भाई, चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई भी मेहमानी करने जाते हैं। किसी जमाने मे 8 – 10 लोग मेहमानी करने जाते थे। अब संख्या घट कर दो तीन लोगों तक सिमट गई है। पहले एक हफ्ता तक वहीं डटे रहना साधारण बात थी वहीं अब बमुश्किल तीन या चार दिन ही टिक पाता है।ससुराल में छोटे साले सालियों और भतीजों के लिए कपड़े खिलोने मिठाई फल आदि खरीदे जाते हैं। अपनी नव वधू के लिए नए कपड़ों सहित सम्पूर्ण श्रंगार खरीदा जाता है। ससुराल के गांव में जितने भी परिवार होते हैं उनके लिए एक-एक बटुआ, रुमाल पंच मेवा, बताशे, मिठाई खरीद कर ले जाते हैं। शाम तक गांव में लोग उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं कि अमुक गाँव के दामाद आ गए हैं। अगले दिन खवास जमाई राजा द्वारा लाई गई गिफ्ट पूरे गाँव में बाँटता है। अगले दिन भुजरियों का जुलूस निकलता है तो सजनी अपने साजन द्वारा लाये गए नए कपड़े, गहने पहनकर इतराती डोलती हैं। उनकी कुंवारी सहेलियां भी कल्पना करती हैं कि अगले साल कोई उनके लिए इससे भी अच्छे वस्त्र आभूषण लेकर आएगा।भुजरियों के दिन सारा गाँव जमाइयों को भुजरिया बान्धकर विदाई रूप में नकद या कोई वस्तु उपहार में देता है। जन्माष्टमी तक इन नये पाहुनों, मिजबानों या मेहमानों के निमंत्रण का दौर चलता रहता है। विदाई में ढेर सारे प्यार, नगदी, कपड़ें, आभूषण आदि गिफ्ट के साथ अपनी नव वधु और ससुराल वालों की मधुर यादों को यादों में बसाकर पाहुने अपने घर लौट जाते हैं। इस प्रकार से नए नए रिश्तेदार बने व्यक्ति का अपने ससुराल के सभी जाति वर्ग के लोगों से स्नेह का एक अटूट बन्धन स्थापित हो जाता है।