आदिवासी महिला सरपंच पर छह वर्ष तक चुनाव लड़ने का प्रतिबंध
राजेन्द्र सिंह भोपाल।
महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज के माध्यम से रामराज्य का सपना देखा था। त्रिस्तरीय पंचायती राज के माध्यम से प्रजातंत्र को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास भी किया गया। किन्तु लोकतन्त्र हवेलियों में कैद हो कर रह गया है। गुना जिले के चांचौड़ा जनपद से एक बड़ी खबर आई है जिसमें एक महिला सरपंच को ६ वर्षों तक चुनाव लडने से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। ग्राम पंचायत नारायणपुरा की सरपंच शीला बाई ने गांव में चार पोखर बनवाने के एवज में १५ लाख रु निकाल लिए लेकीन पोखर नहीं बनवाए। सरकारे किसी भी राजनीतिक दल की हो भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नही लगा पाया है। हालांकि मोदी सरकार ने सीधे हितग्राहियों के खाते में ही रकम जमा करना शुरू कर दिया है लेकिन जानकारों का कहना है कि बिना लेनदेन के कभी कोई काम नहीं होता। सरपंच और अन्य कारिंदों की कोठियां और गाड़ियों का प्रदर्शन देख कर ही पता चल जाता है। इन दिनों प्रधानमंत्री आवास, शौचालय, मुरमीकरण, मेडबंधान, पोखर, कूप निर्माण, खेत तालाब जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार ग्रामीण जनता का आमूल चूल परिवर्तन करना चाहती है लेकिन विकास का पहिया भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा हुआ है। जनपद सीईओ ने सरपंच सचिवों को भ्रष्टाचार पर पत्र जारी करके इति श्री कर ली थी। पंचायतों में भ्रष्टाचार के कई तरीके है जो कि बिना मिलीभगत के संभव ही नहीं है। ऐसे ज्यादातर मामलों में सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक में से जो सबसे कमजोर होता है उसे ही बलि का बकरा बना दिया जाता है। बाकी सारे मगरमच्छो को जांच की आड़ में बचा लिया जाता है। जिन अधिकारियों पर काम की निगरानी रखने का जिम्मा था उन पर कोई कार्रवाई न होना जांच प्रक्रिया को संदेह के घेरे में खड़ा करता है।सबसे अधिक बुरी दशा उन ग्राम पंचायतों की है जिनका सरपंच आरक्षित श्रेणी में आता है। सामान्य तौर पर इन पंचायतों के असली मालिक कोई और ही होते हैं। नारायणपुरा की सरपंच आदिवासी वर्ग से है। छ: वर्ष क्या आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग जाए तो भी उसे कोई फर्क नहीं पड़ना है। क्योंकि असली खिलाड़ी तो कोई और ही है।