भगोरिया – ताड़ी की चहक और मांदल की थाप पर नाचने के लिए तैयार आदिवासी



लोक संस्कृति के पर्व भगोरिया की शुरुआत 23 फरवरी से

इंदौर.आदिवासियों का सांस्कृतिक उत्सव भगोरिया 23 फरवरी से 1 मार्च तक चलेगा। आलीराजपुर जिले में डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर यह पर्व मनेगा। हफ्तेभर चलने वाले इस पर्व की खासियत यह है कि अपने नजदीक के हाट बाजार में सज-धजकर शत-प्रतिशत ग्रामीण पहुंचते हैं। हर हाट में भारी भीड़ उमड़ती है।

ग्रामीण नाचते-गाते तरह-तरह के वाद्य यंत्रों के साथ आएंगे। मेला स्थल पर ही अपने रिश्तेदारों व मित्रों के साथ पर्व की खुशियां मनाएंगे। जगह-जगह झूले और अन्य वस्तुओं की दुकानें भी लगेंगी। हाट में सुबह 10 बजे के बाद से ही भीड़ उमड़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। 12 बजते-बजते तो हाट खचाखच भर जाते हैं। मुख्य समय 12 से 3 बजे का ही रहता है। हाट में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। वहीं मेहनतकश लोगों का उत्साह इस सांस्कृतिक पर्व को लेकर चरम पर होता है।

मांदल की थाप पर नहीं रूक पाते है कदम

पर्व को लेकर एक माह पूर्व से ही बड़ा ढोल विशेष रूप से तैयार किया जाता है। जिसमें एक तरफ आटा लगाया जाता है। ढोल वजन में काफी भारी और बड़ा होता है. जिसे इसे बजाने में महारत हासिल हो, वो ही नृत्य घेरे के मध्य में खड़ा होकर इसे बजाता है। एक रंग की वेशभूषा, चांदी के नख से शिख तक पहने जाने वाले आभूषण, घुंघरू, पावों व हाथों में रंगीन रूमाल लिए गोल घेरा बनाकर मांदल व ढोल, बांसुरी की धुन पर आदिवासी बेहद सुन्दर नृत्य करते हैं। मांदल की थाप जिस वक्त शुरू होती है उस वक्त अपने आप को रोक पाना मुश्किल हो जाता है।

सैलानियों का रहता है जमावड़ा

भगोरिया उत्सव देशभर में प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए बाहर से भारी संख्या में सैलानी यहां आते हैं.इनमें कई विदेशी पर्यटक भी शामिल है. धुलेंडी से पहले के सात दिन भगोरिया हाट बाजार लगते हैं. जहां लोक संस्कृति अपने पूर्ण रूप में उजागर होती है. यही इस उत्सव की खासियत भी है. भगोरिया ऐसा उत्सव है, जिसमें सम्मिलित होने के लिए अंचल का आदिवासी देश के किसी भी कोने में क्यों न हो, अपने गांव लौट आता है. जिले से बड़ी संख्या में ग्रामीण आदिवासी रोजगार की तलाश में सीमावर्ती गुजरात, राजस्थान व महाराष्ट्र राज्य जाते हैं.भगोरिया के पूर्व इनके गांव आने का क्रम शुरू हो जाएगा.

भगोरिया से पहले लगने लगे त्योहारिया हाट

आदिवासी अंचल में भगोरिया हाट से पहले त्योहारिया हाटों का आयोजन शुरू हो गया है। भगोरिया के पूर्व लगने वाले त्योहारिया हाट शुक्रवार 16 फरवरी से 22 फरवरी तक भरेंगे। त्योहारिया हाट में आकर आदिवासी युवक-युवतियों द्वारा भगोरिया में पहनने के लिए जूते-चप्पल, श्रृंगार, गहने व कपड़ों की खरीदारी की जाती है। इसके बाद खरीदी गई साम्रगी से सज-धजकर आदिवासी युवक-युवतियां भगोरिया हाटों में आएंगे। इस दौरान व्यपारियों का व्यापार भी जमकर चलता है।

बांसुरी की मधुर धुन करेगी आकर्षित  

युवतियां समूहों में ड्रेस कोड में आती हैं, जो आकर्षण का केंद्र होता है। इन हाटों में आदिवासी समुदाय के लोग शामिल होकर मस्ती का गुलाल उड़ाएंगे। आदिवासी बालाएं सज-संवरकर इन हाटों में शामिल होंगी। वहीं युवा भी बांसुरी की मधुर धुन और ढोल-मांदल की थाप पर थिरककर अपने उत्साह का प्रदर्शन करेंगे। हाटों में लगने वाली खाद्य सामग्री की दुकानों पर जमकर खरीदारी के साथ झूलों का आनंद उठाएंगे। इन हाटों को लेकर उत्साह बना हुआ है।

चुनावी साल में भगोरिया रहेगा खास

2018 यानि चुनावी साल और चुनाव के ठीक कुछ माह पहले भगोरिया पर्व की शुरुआत दोनों ही दलों के नेताओं के लिए खास रहेगा। दोनो ही दल भगोरिया के लिए अपनी रणनिती बनाकर तैयार बैठे है। इन सात दिनों में क्षेत्र के बड़े नेताओं के अलावा बाहर से प्रदेश स्तर के नेताओं के आने की संभावना है। दोनों ही पार्टी के नेता अपने कार्यकर्ताओं के साथ गैर निकालते नजर आएंगे। कुछ नेता तो टिकिट की दावेदारी को लेकर भी अपने-अपने कार्यकर्ताओ के साथ शक्ति प्रदर्शन करते दिखाई देंगे।

मुख्य मिठाई हार कंकण का निर्माण जारी

पर्व पर परंपरागत रूप से आदिवासी समाज की मुख्य मिठाई शक्कर के हार कंकण का निर्माण शहर में जारी है। प्रतिवर्ष की तरह ही इस वर्ष भी शक्कर के हार कंकण भगोरिया पर प्यार कि मिठास बढ़ाएंगे। शहर में कारागीरों द्वारा प्रतिदिन भगोरिया पर्व की मुख्य मिठाई बनाई जा रही है। शक्कर से बनी यह मिठाई आदिवासी समाज द्वारा खूब पसंद की जाती है। वहीं कई प्रकार की मिठाइयों के बावजूद होली पूजा और भगोरिया पर्व में आदिवासी समाज द्वारा थाली में इसे ही शगुन के रूप में रखा जाता है। वर्तमान में शक्कर के भाव 40 रुपए किलो के करीब है। इस प्रकार इस वर्ष शुद्ध रूप से शक्कर से बनने वाली हार कंकण की मिठाई के भाव कुछ ज्यादा ही रहेंगे।

 

2018:- झाबुआ-आलीराजपुर जिले के भगोरिया पर्व

23 फरवरी
कठ्ठीवाड़ा, वालपुर, उदयगढ़, भगोर, बेकल्दा, मांडली और कालीदेवी।

24 फरवरी
मेघनगर, रानापुर, नानपुर, उमराली, बामनिया, झकनावदा और बलेड़ी।

25 फरवरी
झाबुआ, छकतला, सोरवा, आमखूंट, झीरण, ढोलियावाड़, रायपुरिया, काकनवानी, कनवाड़ा और कुलवट।

26 फरवरी
आलीराजपुर, आजादनगर, पेटलावद, रंभापुर, मोहनकोट, कुंदनपुर, रजला, बडगुड़ा और मेड़वा।

27 फरवरी
बखतगढ़, आम्बुआ, अंधारवड़, पिटोल, खरड़ू, थांदला, तारखेड़ी और बरवेट।

28 फरवरी
बरझर, चांदपुर, बोरी, उमरकोट, माछलिया, करवड़, बोरायता, कल्याणपुरा, खट्टाली, मदरानी और ढेकल।

1 मार्च
फुलमाल, सोंडवा, जोबट, पारा, हरिनगर, सारंगी, समोई और चैनपुरा।

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