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सरकार की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा बैंक बोर्ड ब्यूरो, मार्च में हो सकता है बंद



thedmnews.com पंजाब नैशनल बैंक  (पीएनबी) में हुए फर्जीवाड़े की गहमागहमी के बीच अगले महीने बैंक बोर्ड ब्यूरो  (बीबीबी) पर ताला लटक जाएगा। बैंकों को मानव संसाधन विकसित करने में मदद करने के लिए गठित इस बोर्ड के चेयरमैन विनोद राय का कार्यकाल भी मार्च में ही समाप्त हो रहा है। ऐसा लग नहीं रहा है कि सरकार उनके बाद किसी को इस पद पर नियुक्त करेगी। राय को सरकारी बैंकों में प्रबंधन स्तर के अधिकारियों में कारोबारी आचार और कार्यशैली विकसित करने के लिए सरकार को सलाह देने का जिम्मा सौंपा गया था। thedmnews.com

दरअसल ब्यूरो सरकारी बैंकों में कर्मचारियों की गुणवत्ता सुधारने की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया। पिछले हफ्ते के अंत में पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) ने अपने महाप्रबंधक (मानव संसाधन) को जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। उसके फौरन बाद ब्यूरो को समाप्त करने का फैसला दर्शाता है कि नीरव मोदी जैसे लोग बार-बार बैंकों में सेंध कैसे लगा जाते हैं। दरअसल घोटालेबाज इन बैंकों में मानव संसाधन के अकुशल प्रबंधन की कमजोरी का लाभ उठाते हैं। केंद्र सरकार ने ये खामियां दूर करने के लिए ही दो साल पहले फरवरी, 2016 में भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय के नेतृत्व में बैंक बोर्ड ब्यूरो बनाया था। उसमें शीर्ष बैंक अधिकारियों के साथ वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवा विभाग के सचिव और भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर शामिल थे। लेकिन ब्यूरो ने बैंकों में कार्यकारी स्तर के पदों के लिए चयन के अलावा कुछ नहीं किया।

अलबत्ता इसमें भी देर होती रही। ब्यूरो ने भारतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य के उत्तराधिकारी के रूप में रजनीश कुमार का चयन जुलाई, 2017 में ही कर लिया था। लेकिन मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने इसका ऐलान भट्टाचार्य की सेवानिवृत्ति से चंद दिन पहले 4 अक्टूबर, 2017 को ही किया गया। इसी बैंक में प्रबंध निदेशक पद के लिए भी चयन कुछ महीने पहले ही कर लिया गया है, लेकिन उसकी घोषणा अभी तक नहीं हुई है। सार्वजनिक बैंकों के अधिकारियों को संभालने में हाथ बंटाने से वित्त मंत्रालय हिचकता है। माना जा रहा है कि उसने बोर्ड के साथ काम करने से इनकार कर दिया है।

उधर पीएनबी और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे सरकारी बैंकों ने प्रोबेशनरी अधिकारी के लिए सेवा में प्रशिक्षण की अवधि 24 महीने से घटाकर 1 वर्ष कर दी है। पीएनबी ने तो अपने ट्रेजरी और विदेशी मुद्रा परिचालन अधिकारियों को लंबे समय से रिफ्रेशर प्रशिक्षण के लिए ही नहीं भेजा है। बैंक के एक उच्चाधिकारी ने कहा कि ऐसा नहीं है, ये अपना काम नहीं जानते हैं। लेकिन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सूचना के आदान-प्रदान से बैक अप अधिकारी तैयार हो जाते हैं। बोर्ड स्तर पर निगरानी न होने के कारण बैंकों में जानकार लोगों का समूह तैयार करने के काम पर असर पड़ा है। छोटे बैंकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम और भी खस्ता रहा है। 

स्टेट बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस बात की पुष्टिï की कि उनके द्वारा तैयार ऋण मूल्यांकन की जानकारी अक्सर इन बैंकों के अधिकारी ले जाते हैं और उसके बाद लेटरहेड बदलकर वही मूल्यांकन रिपोर्ट दोबारा आ जाती है। भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में सहायक प्राध्यापक विश्वजीत नाग काकहना है कि कागजात, लॉजिस्टिक और विदेश व्यापार के अन्य वित्तीय पहलुओं को समझने में अधिकारियों को कम से कम 30 घंटे कक्षा में बिताने चाहिए। लेकिन बैंक उन्हें 15 घंटे के लिए भी मुश्किल से भेज पाते हैं। 

बीबीबी को सरकारी बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों, इसके वरिष्ठï प्रबंधन और निदेशक मंडलों से संबंधित सूचना भंडार तैयार करने और इसे सरकार के साझा करने का काम सौंपा गया था। यह भी उम्मीद की जा रही थी कि इससे बैंकों को महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति के लिए नेतृत्व तैयार करने में भी मदद मिलेगी। बैंकिंग क्षेत्र में मौजूदा संकट के मद्देनजर ये दोनों ही काम महत्त्वपूर्ण लग रहे हैं। हालांकि इनमें कोई भी काम ठीक से नहीं चल रहा है।
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