- कांग्रेस किला बचाने में जुटी, भाजपा हथियाने में
विशेष प्रतिनिधि बेंगलुरू.
देश में अप्रैल के महीने से ही पारा चढ़ गया है और तपन महसूस की जा रही है. दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक कर्नाटक में चुनावी सरगर्मी भी बढ़ गई है.चुनावी रणभेरी बज उठने के बाद राजनीतिक दलों ने अपना अभियान तेज कर दिया है. सत्तारूढ़ कांग्रेस जहां अपने इस किले को बचाने की हरसंभव कोशिश में जुटी हुई है वहीं भारतीय जनता पार्टी इसे सिर्फ हथियाने के मूड में है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली जनता दल सेक्युलर भी चुनाव में पूरी ताकत झोंक रही है.
कर्नाटक में 12 मई को मतदान है और 15 मई को वोट गिने जाने है. 224 सीटों के लिए साढ़े चार करोड़ से ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करने वाले है. कांग्रेस यहां 2014 से सत्ता में है और वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को ही चेहरा बनाकर चुनाव समर में कूदी हुई है.वहीं भारतीय जनता पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा का चेहरा आगे कर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के लिए कर्नाटक का चुनाव अग्मी परीक्षा की तरह है. देश में जिन चुनिंदा राज्यों में कांग्रेस की सरकार बची है, उसमें कर्नाटक सबसे बड़ा राज्य है. इसलिए कांग्रेस और खुद राहुल गांधी ने इस चुनाव में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है. वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए दक्षिण का द्वार रह चुके कर्नाटक में वो फिर सत्ता में आने को बेताब है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित कई केंद्रीय मंत्री और बड़े नेता कर्नाटक के गांव-गांव तक पसीना बहा रहे है. लोकसभा उपचुनाव में देश के भाजपा शासित राज्यों में पार्टी की हार के बाद मिशन कर्नाटक को बहुत गंभीरता से लिया गया है. त्रिपुरा में चलो पलटाई का नारा देकर विजय श्री वरण करने वाली भाजपा कर्नाटक में भी सत्ता परिवर्तन का नारा बुलंद किए हुए है. कांग्रेस को अगर पांच साल के विकास के आधार पर जीत का भरोसा है तो भाजपा सत्ता विरोधी लहर को वोटों में भुनाने की फिराक में है.
जातियों को साधने का भी खेल यहां खूब खेला जा रहा है. बड़े-बड़े नेता मठों मंदिरों में शीश नवा रहे है. लिंगायत समुदाय और दलित वोटों पर दोनों पार्टियों की नजर टिकी हुई है. लिंगायत यहां कुल वोटों का 15 प्रतिशत है तो दलितों की उपस्थिति 30 प्रतिशत है. 12 प्रतिशत मुस्लिम आबादी भी चुनाव में महत्वपूर्ण रोल अपनाने वाली है. फिलहाल कर्नाटक में कांग्रेस के पास 122, भाजपा के पास 40 और जनता दल सेक्युलर के पास 40 सीटे है. येदुरप्पा पिछला चुनाव अलग पार्टी बनाकर लड़े थे, बाद में उनकी पार्टी का विलय भाजपा में हो गया और भाजपा के विधायकों की संख्या 46 हो गई. मुकाबला कांटे का लग रहा है, ऐसे में जनता दल सेक्युलर को भी लगता है कि वो अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा देगी तो वो किंग मेकर की भूमिका में भी आ सकती है.
मोदी का इंतजार – गुजरात में ऐन वक्त पर भाजपा की नैय्या को पार लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाओं का कर्नाटक में बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है. भाजपा भले ही स्थानीय तौर पर यदुरप्पा के चेहरे को आगे रख मैदान में उतरी हो पर उसका असली जिताऊ और वोट खींचू चेहरा नरेंद्र मोदी ही हैं.