राजेंद्र सिंह
भोपाल.
कभी कांग्रेस का अजेय दुर्ग समझी जाने वाली चांचौड़ा विधानसभा सीट पर आजकल भाजपा का झंडा बुलंदी पर है। प्रचंड मोदी लहर को भांप कर कांग्रेस के बड़े-बड़े सुरमा यहाँ से कन्नी काट गए थे लेकिन अब मतदाताओं के मिजाज को भांपने के लिए उन्होंने राजनीतिक गतिविधियाँ बढा दी हैं जिससे कांग्रेस में अंतर्कलह उभरने लगा है।
पूरे 20 सालों तक चाचौड़ा विधानसभा पर कांग्रेस के कद्दावर नेता शिवनारायण मीणा का बोलबाला रहा। वे दिग्विजयसिंह के सर्वाधिक विश्वास पात्रों में गिने जाते हैं। इसलिए चाचौड़ा सीट को राघोगढ़ किले का पर्याय माना जाने लगा था। लेकिन समय के साथ भाजपा की ममता मीणा ने कांग्रेस के वर्चस्व को चुनोती दी। पहला विधानसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने नए सिरे से तैयारी की ओर दूसरी बार मे पार्टी के विशेष सहयोग के बिना ही लगभग चौतीस हजार वोटों की बढ़त लेकर चुनाव जीता।
बीनागंज मंडी चुनाव में विधायक ममता मीणा ने अपनी माँ शकुन्तला मीणा को मंडी अध्यक्ष बनवा लिया। कांग्रेस के देवेन्द्र मीणा पटोन्दी इस चुनाव में अकेले पड़ गए और किले का पर्याप्त सहयोग न मिलने से सरोज बाई मीणा जीती हुई बाजी हार गई। कुंभराज मंडी में जरूर सरोज बाई भगवान सिंह मीणा दितलवाडा ने कांग्रेस की लाज बचा ली।
जनपद चुनावो में तो कांग्रेस का आत्मबल पूरी तरह से खत्म हो गया था और बीजेपी समर्थित उम्मीदवार निर्विरोध जनपद अध्यक्ष बन गई।
नगर पंचायत चुनावों में भी भाजपा ने ही दोनों जगह बाजी मारी। फलस्वरूप खोई प्रतिष्ठा पाने के लिए राघोगढ़ विधायक जयवर्धन सिंह ने चाचौड़ा क्षेत्र में दौरे शुरू कर दिए। इसी बीच बीजेपी की ही अर्चना बल्लू चौहान गुना जिला पंचायत अध्यक्ष बन गई। यहाँ भी कांग्रेस विरोध तक नहीं कर पाई।
खोई जमीन हासिल करने के लिए पूर्व सांसद लक्ष्मण सिंह ने बीनागंज में एक सभा रखी थी। जिसे विधायक ममता मीणा के तीव्र विरोध के चलते प्रशासन ने होने नहीं दिया। अंत मे कांग्रेस के इस बाहुबली को नगर से बाहर सभा की रस्म अदायगी करना पड़ी। इस घटना के बाद से चाचौड़ा विधानसभा सीट राघोगढ़ किले के लिए नाक का सवाल बन गई है। कांग्रेस ने कई छुटभैयों को फ्री हैंड दे दिया और जनसंपर्क की बाढ़ आ गई।
किले में भी सब कुछ ठीक नहीं दिखता। इसी लिए लक्ष्मण सिंह अपने लिए चाचौड़ा में सम्भावना तलाश रहे हैं। उनके समर्थक उनका नाम चला रहे हैं। सत्ता सुख के लड्डू उनके भी मन मे फूट रहे हैं। लेकिन चाचौड़ा के मतदाता उन्हें सांसद प्रत्याशी के रूप में तो देखना चाहते हैं लेकिन अपने विधायक प्रत्याशी के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी के लिए दोनों काका-भतीजा की जोड़ी सतत जनसंपर्क में जुटी हुई है। दोनों ने सावन के महीने में खामखेड़ा बालाजी राजस्थान तक की दो दिवसीय धार्मिक पद यात्रा भी की। जिन कांग्रेस नेताओं को टिकिट का आश्वासन देकर सक्रिय किया गया था उन्हें संगठन में विभिन्न पद दिए जा रहे हैं। ताकि भावी प्रत्याशी के लिए मैदान खाली रहे।
लक्ष्मण सिंह की उम्मीवारी को लेकर स्थानीय कांग्रेस पार्टी में वैचारिक रूप से दो धडे हो गए हैं। एक गुट जहां छोटे राजा के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मण सिंह की उम्मीवारी का स्वागत कर रहा है वहीं दूसरा गुट इसे अपनी उम्मीवारी में दखल के रूप में देख रहा है। इनका कहना है कि चुनावी हरियाली देखकर प्रवासी प्रत्याशी आने लगे हैं जिन कांग्रेसियों ने पूरे पांच साल तक तन मन ओर धन से पार्टी को जिलाये रखा अब उन्हें दर किनार किया जा रहा है। कभी मप्र के चाणक्य के रूप में मशहूर रहे दिग्विजय सिंह चाचौड़ा विधानसभा ओर अपने अनुज को लेकर क्या रणनीति रचते हैं ये देखना दिलचस्प रहेगा।
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