इंदिरा की हत्या के बाद आग के हवाले ”राजबाडा”



thedmnews.in  इंदौर। रजवाड़ा महल, इंदौर पर्यटन के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। रजवाड़ा, होलकर राजवंश के शासकों की ऐतिहासिक हवेली है। इस महल का निर्माण लगभग 200 साल पहले हुआ था और आज तक यह महल पर्यटकों के लिए एक विशेष आकर्षण रखता है। इस महल की वास्‍तुकला, फ्रैंच, मराठा और मुगल शैली के कई रूपों व वास्‍तुशैलियों का मिश्रण है। यह इमारत, शहर के बीचों-बीच शान से खड़ी है जो सात मंजिला इमारत है। इस महल का प्रवेश बेहद सुंदर व भव्‍य है। एक महान तोरण, महल के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। लकड़ी और लोहे से निर्मित राजसी संरचना से बना महल का प्रवेश द्वार यहां आने वाले हर पर्यटक का स्‍वागत करता है। यह पूरा महल लकड़ी और पत्‍थर से निर्मित है। बड़ी – बड़ी खिड़कियां, बालकनी और गलियारे, होलकर शासकों और उनकी भव्‍यता का प्रमाण है। इंदौर आने वाले हर पर्यटक को रजवाड़ा अवश्‍य आना चाहिए।
सन् 1747 में भव्य राजप्रसाद के निर्माण शुरू किया जो राजबाड़ा कहलाया।
 इंदौर में बना ये राजबाड़ा यहां की शान कहलाता है। इसके बनने से लेकर कई खास बातें हैं। अपनी सीरीज ‘भारत का दिल मध्य प्रदेश’ में आज बताने जा रहा है। कई बार टूटा लेकिन फिर से खड़े हुए इंदौर के इस राजबाड़े के बारे में। 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए दंगों में इसे जला दिया गया था। 
पुरातत्व विभाग संग्रहालय के अध्यक्ष प्रकाश परांजपे के अनुसार,5 तथ्य राजबाड़ा के निर्माण और इतिहास से मल्हारराव होलकर को तीन अक्टूबर 1730 को मराठों ने उत्तर भारत के सैनिक अभियानों का नेतृत्व दिया। सैनिक अभियानों की व्यस्तता के कारण उन्होंने स्थायी निवास के लिए खासगी जागीर देने के लिए छत्रपति साहू से निवेदन किया। पेशवा बाजीराव ने सन् 1734 ई में मल्हार राव की पत्नी गौतमाबाई होल्कर के नाम खासगी जागीर तैयार करवायी, जिसमें इंदौर भी था। सन् 1747 में भव्य राजप्रसाद के निर्माण शुरू किया जो राजबाड़ा कहलाया। यह बन भी न पाया था कि 1761 ई में अब्दाली के हाथों हुई पराजय को मल्हारराव सह न सके और 1765 ई. में नहीं रहे। उत्तराधिकार मल्हार राव की पुत्रवधू अहिल्याबाई को मिला। उन्होंने अपनी राजधानी महेश्वर बनाई।

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