ब्रह्मदीप अलुने
कोरोना से निपटने के लिए शहरों से लेकर गांवों तक जद्दोजहद जारी है, इस बीच मध्यप्रदेश के आदिवासी ज़िले अालीराजपुर का हाल कैसा है ये सवाल लगातार उठ रहा है। आलीराजपुर जिला काफी संवेदनशील है, क्योंकि गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की सीमाएं इससे लगती है। आदिवासी अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं हमेशा कटघरे में रही है एेसे में वहां कोरोना को रोकने के लिए प्रशासन ने क्या तैयारियां की है,क्योंकि जरा सी चूक होने पर बहुत बड़ी कीमत यहां के लोगों को चुकानी पड़ सकती है। आइये जानते हैं…
अदन, सुमा, राधा और लक्ष्मी जैसे कई परिवार गुजरात के पोरबंदर से पूरी रात का सफर तय करके बमुश्किल अपने गांव पहुंचे हैं। कोरोना के संकट और देशभर में लॉकडाउन की घोषणा के बीच आदिवासी बाहुल्य अालीराजपुर के कई गांवों और उनसे लगे फलियों में पिछलें कुछ दिनों में तकरीबन 1200 लोग आ चुके है। गुजरात की सीमा से लगे आलीराजपुर में रोजगार का संकट होने से यहां के अधिकांश आदिवासी परिवार पड़ोसी राज्य में रोजगार के लिए पलायन कर जाते है। गुजरात में इनके लिए रोजगार के ज्यादा अवसर है,ये लोग वहां खेतों का ठेका लेकर उसकी देखभाल करते है तो निर्माण आदि कार्यों में मजदूरी करके पैसा अर्जित करके अपना जीवन यापन करते है लेकिन मौजूदा हालात यहां भी ठीक नहीं है, हालांकि कोरोना का कोई मरीज यहां नहीं मिला है लेकिन इस बीमारी से निपटने के लिए यहां कोई पुख्ता तैयारी नहीं है। स्वास्थ्य सेवाअों के लिए इंफ्रास्ट्रक्टर आजादी के बाद से अब तक यहां खड़ा नहीं हो सका है। जिला अस्पताल महज रैफर पॉइंट ही बनकर रह गया है।
ये है ज़मीनी हकीकत
17 मई 2008 को झाबुआ से अलग होकर नए जिले के रूप में अस्तित्व में आए आलीराजपुर को देश का बेहद गरीब और पिछड़ा जिला माना जाता है। यहां की 87 फीसदी आबादी आदिवासी है और विकास से बहुत दूर है। जिले में 550 से अधिक गांव है लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर नाममात्र की सेवाएं है। कोरोना से निपटने के लिए इस इलाके में पूर्ण तैयारी का दावा तो किया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है। गुजरात से आने वाले मजदूरों का पता लगते ही स्वास्थ्यकर्मी उनसे पूछताछ करते है और उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेकर उनका नाम पता रजिस्टर में अंकित कर लेते हैं। इन पूछताछ करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के पास कोरोना को पहचानने, उसका पता लगाने और उससे बचाव के कोई उपकरण उपलब्ध नहीं है। इसके बाद ये लोग अपने गांवों और फलियों में चले जाते है। आलीराजपुर की दूर दराज पहाड़ों में आदिवासी बसे हैं। इनकी बसाहट भिन्न है और वे खेतों में भी घर बनाकर रहते है। कोरोना से निपटने के लिए एक-मात्र जिला अस्पताल को तैयार बताया जा रहा है,जबकि वह भी आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित नहीं है। जिले में 5 सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र है तथा 14 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। यहीं पर डाक्टर उपलब्ध होते है जबकि 184 उप स्वास्थ्य केन्द्र नर्सों के भरोसे संचालित हो रहे है। स्वास्थ्य सेवाएं देख रहे डॉ.प्रकाश ढोके का कहना है कि कोरोना से निपटने के लिए अमला तैयार है और पूरी सावधानी रखी जा रही है।