BIRTHDAY BOY – राहुल गांधी विशेष…आपके लिए



कांग्रेस अध्‍यक्ष व अमेठी से सांसद राहुल गांधी का आज जन्‍मदिन है। राहुल का जन्‍म 19 जून 1970 को दिल्‍ली मे हुआ। आज राहुल गांधी 48 वर्ष के हो चुके है। जन्‍म दिवस पर खास…

राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को दिल्ली में हुआ. वे प्राचीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दो बच्चों में सबसे बड़े थे. उनकी माता सोनिया गांधी वैसे तो इटली से है लेकिन अभी उन्होंने भारत की नागरिकता स्वीकार कर ली है. उनकी छोटी बहन प्रियंका वाड्रा ने व्यापारी रोबर्ट वाड्रा से शादी कर ली.

राहुल गांधी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा सेंट कोलंबिया स्कूल दिल्ली से ग्रहण की और फिर बाद में 1981 से 1983 तक वे पढ़ने के लिए डून स्कूल, देहरादून, उत्तराखंड गए.

अब तक उनके जीवन में उनके साथ काफी हादसे हुए. 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गयी, जिसने राजीव गांधी को राजनीती में लाया और परिणामतः उन्हें भी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. गांधी परिवार का उस समय सिख समुदाय में काफी विरोध किया था इसके चलते उस दौरान उनके परिवार को बहोत सुरक्षा प्रदान की गयी थी. परिणामतः विरोध के चलते राहुल और उनकी बहन प्रियंका को घर पर ही शिक्षा दी जाती थी.

सन् 1989 में वे दिल्ली कीसेंट स्टीफेन कॉलेज में शामिल हुए और वहा अपनी पढाई का प्रथम वर्ष पूरा करने के बाद वे हावर्ड विश्वविद्यालय गए. और इसी दौरान उनके साथ एक और हादसा हुवा, 1991 में LTTE द्वारा राजीव गांधी की भी हत्या कर दी गयी. दोबारा सुरक्षा को मध्यनजर रखते हुए राहुल को फ्लोरिडा के रोल्लिन्स कॉलेज में भेजा गया जहा उन्होंने 1994 में अपना BA पूरा किया. उस समय ऐसा माना जाता की थी केवल उनकी सुरक्षा एजेंसी और विश्वविद्यालय समिति को ही उनकी सही पहचान मालूम थी.

1995 में उन्होंने अपना M.Phil पुरा किया और इसी के साथ उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से विकास संबंधी शिक्षा प्राप्त की.

अपने ग्रेजुएशन के बाद, 3 साल तक राहुल गांधी ने लंदन के मॉनिटर ग्रुप के लिए काम किया, जो मैनेजमेंट गुरु माइकल पोर्टर की ही सलाहकार संस्था थी. 2002 के अंत में भारत वापिस आने के बाद वे टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिंग फर्म और बस्कोपस सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड, मुम्बई के अध्यक्ष बने.

2003 में, राहुल गांधी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बारे में बड़े पैमाने पर मीडिया में अटकलबाजी का बाज़ार गर्म था, जिसकी उन्होंने तब कोई पुष्टि नहीं की। वह सार्वजनिक समारोहों और कांग्रेस की बैठकों में बस अपनी माँ के साथ दिखाई दिए। एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट श्रृंखला देखने के लिए सद्भावना यात्रा पर अपनी बहन प्रियंका गाँधी के साथ पाकिस्तान भी गए।

जनवरी 2004 में राजनीति उनके और उनकी बहन के संभावित प्रवेश के बारे में अटकलें बढ़ीं जब उन्होंने अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र अमेठी का दौरा किया, जहाँ से उस समय उनकी माँ सांसद थीं। उन्होंने यह कह कर कि “मैं राजनीति के विरुद्ध नहीं हूँ। मैंने यह तय नहीं किया है कि मैं राजनीति में कब प्रवेश करूँगा और वास्तव में, करूँगा भी या नहीं।” एक स्पष्ट प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया था।

मार्च 2004 में, मई 2004 का चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश की घोषणा की, वह अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा चुनाव के लिए खड़े हुए, जो भारत की संसद का निचला सदन है।इससे पहले, उनके चाचा संजय गांधी ने, जो एक विमान दुर्घटना के शिकार हुए थे, ने संसद में इसी क्षेत्र का नेतृत्व किया था। तब इस लोकसभा सीट पर उनकी माँ थी, जब तक वह पड़ोस के निर्वाचन-क्षेत्र रायबरेली स्थानान्तरित नहीं हुई थी। उस समय इनकी पार्टी ने राज्य की 80 में से महज़ 10 लोकसभा सीट ही जीतीं थीं और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का हाल बुरा था।

 इससे राजनीतिक टीकाकारों को थोड़ा आश्चर्य भी हुआ जिन्होंने राहुल की बहन प्रियंका गाँधी में करिश्मा कर सकने और सफल होने की संभावना देखी थी। पर तब पार्टी के अधिकारियों के पास मीडिया के लिए उनका बायोडेटा तैयार नहीं था। ये अटकलें लगाई गयीं कि भारत के सबसे मशहूर राजनीतिक परिवारों में से एक देश की युवा आबादी के बीच इस युवा सदस्य की उपस्थिति कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक भाग्य को पुनर्जीवन देगी। विदेशी मीडिया के साथ अपने पहले इंटरव्यू में, उन्होंने स्वयं को ‘देश को जोड़ने वाली शख्सियत’ के रूप में पेश किया और भारत की “विभाजनकारी” राजनीति की निंदा की, यह कहते हुए कि वह जातीय और धार्मिक तनाव को कम करने की कोशिश करेंगे। उनकी उम्मीदवारी का स्थानीय जनता ने उत्साह के साथ स्वागत किया, जिनका इस क्षेत्र में इस गाँधी-परिवार से एक लंबा संबंध था।

वह चुनाव विशाल बहुमत से जीते, वोटों में 1,00,000 के अंतर के साथ इन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र को परिवार का गढ़ बनाए रखा, जब कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित रूप से हराया।उनका अभियान उनकी छोटी बहन, प्रियंका गाँधी द्वारा संचालित किया गया था। 2006 तक उन्होंने कोई अन्य पद ग्रहण नहीं किया और मुख्य निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों और उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया और भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रेस में व्यापक रूप से अटकलें थी कि सोनिया गांधी भविष्य में उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर का कांग्रेस नेता बनाने के लिए तैयार कर रही हैं, जो बात बाद में सच साबित हुई।

जनवरी 2006 में, हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सम्मेलन में, पार्टी के हजारों सदस्यों ने गांधी को पार्टी में एक और महत्वपूर्ण नेतृत्व की भूमिका के लिए प्रोत्साहित किया और प्रतिनिधियों के संबोधन की मांग की। उन्होंने कहा, “मैं इसकी सराहना करता हूँ और मैं आपकी भावनाओं और समर्थन के लिए आभारी हूँ. मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपको निराश नहीं करूँगा” लेकिन उनसे इस बारे में धैर्य रखने को कहा और पार्टी में तुरंत एक उच्च पद लेने से मना कर दिया। 

गांधी और उनकी बहन ने 2006 में रायबरेली में पुनः सत्तारूढ़ होने के लिए उनकी माँ सोनिया गाँधी का चुनाव अभियान हाथ में लिया, जो आसानी से 4,00,000 मतों से अधिक अंतर के साथ जीती थीं।

2007 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए एक उच्च स्तरीय कांग्रेस अभियान में उन्होंने प्रमुख भूमिका अदा की ; हालाँकि कांग्रेस ने 8.53% मतदान के साथ केवल 22 सीटें ही जीतीं। इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को बहुमत मिला, जो पिछड़ी जाति के भारतीयों का प्रतिनिधित्व करती है।

राहुल गांधी को 24 सितंबर 2007 में पार्टी-संगठन के एक फेर-बदल में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त किया गया था। उसी फेर-बदल में, उन्हें युवा कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ का कार्यभार भी दिया गया था।

एक युवा नेता के रूप में खुद को साबित करने के उनके प्रयास में नवम्बर 2008 में उन्होंने नई दिल्ली में अपने 12, तुगलक लेन स्थित निवास में कम से कम 40 लोगों को ध्यानपूर्वक चुनने के लिए साक्षात्कार आयोजित किया, जो भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) के वैचारिक-दस्ते के हरावल बनेंगे, जब से वह सितम्बर 2007 में महासचिव नियुक्त हुए हैं तब से इस संगठन को परिणत करने के इच्छुक हैं।

2009 चुनाव

2009 के लोकसभा चुनावों में, उन्होंने उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 3,33,000 वोटों के अन्तर से पराजित करके अपना अमेठी निर्वाचक क्षेत्र बनाए रखा। इन चुनावों में कांग्रेस ने कुल 80 लोकसभा सीटों में से 21 जीतकर उत्तर प्रदेश में खुद को पुनर्जीवित किया और इस बदलाव का श्रेय भी राहुल गांधी को ही दिया गया है। छह सप्ताह में देश भर में उन्होंने 125 रैलियों में भाषण दिया था।

2013 मेंं कांग्रेस अध्‍यक्ष सानिया गांधी के समय राहुल गांधी को निर्विरोध पार्टी का उपाध्‍यक्ष चुना गया। 2014 के लोकसभा चुनावों में, उन्‍होंने दौबारा निकटतम प्रतिद्वंदी को काफी से अंतर से हराया और अपनी सीट बनाए रखी। 

2017 में राहुल गांधी को सर्वसम्‍मति से निर्विरोध कांग्रेस पार्टी का अध्‍यक्ष चुन लिया गया। इसके बाद से राहुल गांधी कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभा रहे है। साभार गुगल एंड ज्ञानी पंडित आदि     

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