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स्वामी विवेकानंद के कई प्रेरक प्रसंग ऐसे हैं, जिनमें छिपे सूत्रों को जीवन में उतार लेने से हमारी कई लाभ मिल सकते हैं।
स्वामी विवेकानंद के बारे में एक बात अधिकतर लोग जानते हैं कि उनकी याददाश्त बहुत तेज थी। वे बहुत ही जल्दी पूरी किताब पढ़ लेते थे और किताब की हर बात उन्हें याद रहती थी। स्वामीजी की याददाश्त के संबंध में एक प्रसंग काफी प्रचलित है, जिसमें उन्होंने अपनी तेज याददाश्त का रहस्य बताया है।
ये है पूरा प्रसंग…
– यह बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद देश भ्रमण में थे। साथ में उनके एक गुरु भाई भी थे। स्वाध्याय, सत्संग और कठोर तप का अविराम सिलसिला चल रहा था। जहां कहीं अच्छे ग्रंथ मिलते, वे उनको पढ़ना नहीं भूलते थे।
– किसी नई जगह जाने पर उनकी सब से पहली तलाश किसी अच्छे पुस्तकालय की रहती थी। एक जगह एक पुस्तकालय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया। उन्होंने सोचा, क्यों न यहां थोड़े दिनों तक डेरा जमाया जाए।
– उनके गुरुभाई उन्हें पुस्तकालय से संस्कृत और अंग्रेजी की नई-नई किताबें लाकर देते थे। स्वामीजी उन्हें पढ़कर अगले दिन वापस कर देते।रोज नई किताबें वह भी पर्याप्त पृष्ठों वाली इस तरह से देते और वापस लेते हुए उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हो गया।
– उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा, क्या आप इतनी सारी नई-नई किताबें केवल देखने के लिए ले जाते हैं। यदि इन्हें देखना ही है तो मैं यूं ही यहां पर दिखा देता हूं। रोज इतना वजन उठाने की क्या जरूरत है।
– लाइब्रेरियन की इस बात पर स्वामी जी के गुरु भाई ने गंभीरतापूर्वक कहा, जैसा आप समझ रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है। हमारे गुरु भाई इन सब पुस्तकों को पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं। फिर वापस करते हैं। इस उत्तर से आश्चर्यचकित होते हुए लाइब्रेरियन ने कहा, यदि ऐसा है तो मैं उनसे जरूर मिलना चाहूंगा।
– अगले दिन स्वामी जी उससे मिले और कहा, महाशय, आप हैरान न हों। मैंने न केवल उन किताबों को पढ़ा है, बल्कि उनको याद भी कर लिया है। इतना कहते हुए उन्होंने वापस की गई। कुछ किताबें उसे थमायी और उनके कई महत्वपूर्ण अंशों को शब्द सहित सुना दिया।
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