चुनाव से पहले फिर छायेगा हिन्‍दी-चीनी भाई-भाई नारा !



thedmnews.com भारत-चीन संबंध 2019 के आमचुनावों के लिए अचानक बेहद अहम हो गए हैं. चुनाव से पहले शायद हिन्‍‍‍‍दी-चीनी भाई भाई का नारा फिर छाने वाला है। पीएम नरेन्द्र मोदी का जून में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलना तय है. इसके बावजूद बीते एक हफ्ते की कवायद के बाद प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग ने इसी हफ्ते एक दूसरे से अनौपचारिक मुलाकात करने का फैसला लिया है.

मोदी-जिनपिंग मुलाकात

चीन के लिए यह मौका मौजूदा वैश्विक चुनौतियां के बीच कुछ नया पैंतरा चलने का है. वहीं, भारत में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को 2019 के शुरुआत में होने वाले आम चुनावों से पहले वैश्विक कारोबार के क्षेत्र में कुछ बड़ा और कुछ अलग करने का यह आखिरी मौका है.

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मोदी सरकार के कार्यकाल को चार साल पूरे होने जा रहे हैं. एक महीने में केन्द्र सरकार को अपने चार साल के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड पेश करना है. हालांकि उससे भी पहले कर्नाटक में बेहद अहम विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि आम चुनावों से पहले वह कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दे.

कांग्रेस मुक्त भारत के बाद क्या?

इससे एक वह ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ नारे को सफल करने के बेहद करीब पहुंच जाएगी और दो आम चुनावों से पहले उसकी लोकप्रियता एक बार फिर बिना किसी चुनौती के शीर्ष पर स्थापित हो जाएगी. दोनों ही चीजें 2019 में उसके लिए जीत का रास्ता साफ करने का काम करेंगी. इसके बावजूद मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती घरेलू और वैश्विक आर्थिक क्षेत्र में पैदा हो रही है. इन चुनौतियों से निपटने के लिए उसे वैश्विक स्तर पर कुछ बड़ा और कुछ अलग करने की जरूरत है.

मोदी सरकार की आर्थिक चुनौतियां?

गौरतलब है कि जहां घरेलू अर्थव्यवस्था नोटबंदी, जीएसटी, बैंक घोटाले और बेरोजगारी की चुनौतियों से जूझ रही रही, वहीं वैश्विक स्तर पर अमेरिका और चीन के बीच गहराता ट्रेड वॉर और कच्चे तेल की कीमतों में लगातार हो रहा इजाफा भविष्य की चुनौतियों को और भी गहरा कर रहे हैं. इन सब के बीच मोदी सरकार को अपने मेक इन इंडिया जैसे फ्लैगशिप कार्यक्रम के लिए किसी देश से कोई अहम पहल होते नहीं दिखाई दे रही है.

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चीन एक आखिरी मौका?

मोदी सरकार के सबसे अहम कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ को चीन से ‘संजीवनी’ मिल सकती है. आर्थिक मोर्चे पर आम चुनावों से पहले राहत मिलने का यह एक मात्र जरिया है. जिनपिंग से इस हफ्ते और जून की मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी वैश्विक स्तर पर न ही किसी बड़े नेता से मिलेंगे और न ही किसी बड़े देश को भारत की ऐसी सरकार से करार करने में रुचि होगी जो आम चुनावों में खराब आर्थिक रिपोर्ट कार्ड लेकर जा रही है. ऐसी स्थिति में मोदी-जिनपिंग की यह मुलाकात जून में होने वाली मुलाकात के दौरान मेक इन इंडिया, वन बेल्ट वन रोड, आईटी, एनर्जी, इंपोर्ट-एक्सपोर्ट और बैंकिंग के क्षेत्र में अहम सहमति बनाने में अहम भूमिका अदा कर सकती है.

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