CM चौहान – डॉ.भागवत पहुंचे सांदीपनि आश्रम, ये है 64 कलाएं



thedmnews.com उज्जैन. मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं डॉ.मोहन भागवत ने उज्जैन प्रवास के दौरान मंगलनाथ रोड स्थित सान्दीपनि आश्रम में संस्कृति विभाग द्वारा चिरस्थायी भगवान श्रीकृष्ण के विद्याध्ययन के दौरान उनके द्वारा सीखी गई चौंसठ कलाओं पर आधारित दीर्घाओं का अवलोकन किया। इस अवसर पर डॉ.सत्यपालसिंह केन्द्रीय शिक्षा राज्यमंत्री, ऊर्जा मंत्री श्री पारस जैन, शिक्षा राज्य मंत्री श्री सुरेन्द्र पटवा, संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव श्री मनोज श्रीवास्तव आदि मौजूद थे। मुख्यमंत्री श्री चौहान, डॉ.मोहन भागवत आदि ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई 64 कलाओं पर आधारित कलादीर्घाओं की सराहना की और कहा कि दीर्घाओं में इन सभी कलाओं का विषद एवं सुंदर चित्रण किया गया है।

भगवान श्रीकृष्ण भाई बलराम एवं सुदामा के साथ उज्जैन सान्दीपनि आश्रम में विद्याध्ययन करने आये थे। इस दौरान उन्होंने चौंसठ कलाएं सीखी थीं। भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र 64 कलाओं में निपुण बताये गये हैं, जिनकी शिक्षा उन्होंने गुरू सान्दीपनि से प्राप्त की थी। संस्कृति विभाग द्वारा अंकपात मार्ग स्थित गुरू सान्दीपनि आश्रम में 64 कलाओं को प्रदिर्शित करती हुई यह कला दीर्घा अत्यंत आकर्षक एवं ज्ञानवर्धक है।

उल्लेखनीय है कि भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। शुक्रनीति आदि में 64 कलाओं का वर्णन है। दण्डी ने काव्यादर्श में इनको ‘कामार्थसंश्रयाः’ कहा है (अर्थात् काम और अर्थ कला के ऊपर आश्रय पाते हैं।) – नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः। शाष्त्रों में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं- गानविद्या, वाद्य, नृत्य, नाट्य, चित्रकारी, बेल-बूटे बनाना, चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना, फूलों की सेज बनान, दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना, मणियों की फर्श बनाना, शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा), जल को बांध देना, विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना, हार-माला आदि बनाना, कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना, कपड़े और गहने बनाना, फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना, कानों के पत्तों की रचना करना, सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना, इंद्रजाल-जादूगरी, चाहे जैसा वेष धारण कर लेना, हाथ की फुतीकें काम, तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना, तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना, सूई का काम, कठपुतली बनाना, नाचना, प्रतिमा आदि बनाना, कूटनीति, ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी, नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना, समस्यापूर्ति करना, पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना, गलीचे, दरी आदि बनाना, बढ़ई की कारीगरी, गृह आदि बनाने की कारीगरी, सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा, सोना-चांदी आदि बना लेना, मणियों के रंग को पहचानना, खानों की पहचान, वृक्षों की चिकित्सा, भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति, तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना, उच्चाटनकी विधि, केशों की सफाई का कौशल, मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना, म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना, विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान, शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना, नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना, रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना, सांकेतिक भाषा बनाना, मन में कटकरचना करना, नयी-नयी बातें निकालना, छल से काम निकालना, समस्त कोशों का ज्ञान, समस्त छन्दों का ज्ञान, वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या, द्यू्त क्रीड़ा, दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण, बालकों के खेल, मन्त्रविद्या, विजय प्राप्त कराने वाली विद्या, बेताल आदि को वश में रखने की विद्या।

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