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चंदेल और राजपूत ने बनाए ये हिन्‍दूू मंदिर, 85 मंदिरों में से आज बचे है 22



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अपने मंदिरों की मूर्तिकला की महिमा से खजुराहो दुनिया को स्तब्ध कर देता है. चंदेल तथा राजपूत कुल द्वारा 950 से 1100 ई. के बीच निर्मित यह मंदिर अनुपम हैं, जो हिंदू वास्तुकला और मूर्तिकला के कुछ सबसे उत्तम नमूनों का प्रतिनिधित्व करते है. ऐसे मंदिर, भारत का दुनिया के लिए अनोखा उपहार हैं. यहाँ, परमात्मा से मिलन के आसन में गढ़े पुरुष-महिला जोड़ों की मूर्तियों, शिल्पकला के शिखर का अनुभव दिलाती है. यह शिल्प जीवन का, खुशी का, प्यार का जय गान है,

रचनात्मकता की एक सच्ची प्रेरित लहर में यह शिल्प बनाए गए थे. ऐसे कुल 85 मंदिरों में से आज, केवल 22 मंदिर टिक पाए है, जो दुनिया के महान कलात्मक आश्चर्यों में से एक है. वास्तुकला की दृष्टी से भी वे अद्वितीय हैं, क्योंकि अपनी अवधि के मंदिर प्रोटोटाइप से वे बहुत अलग रहे है. हर मंदिर एक उंचे, पक्के मंच पर, उर्ध्व दिशा में उच्च संरचना पर, भव्यता और चमक के जादुई प्रभाव के साथ खड़ा है. इसके हर प्रमुख हिस्से का अपना छत है, जो इस तरह एक-दुजे से जुडे हुए है, कि, उनमें से सबसे उंचा हिस्सा मध्य स्थान पर तथा नीचला बरामदे के स्तर पर है, जो देवताओं के निवास हिमालय की बढ़ती चोटियों समान, एक बेहद मनोरंजक कल्पना सा प्रतीत होता है.

चंदेल इतिहास की उत्कृष्ट अवधि के दौरान निर्मित यह मंदिर, पूरी तरह से बलुआ पत्थर में बने हुए है, जो केन नदी के पूर्वी तट की पन्ना खदानों से लाया गया था. चुने का उपयोग मालूम न होने के कारण पत्थर की सिल्ली को एक साथ जोडा जाता था. खजुराहो के सभी मंदिर एक सजातीय शैली और एक विशिष्ट वास्तुकला के साथ शैव, वैष्णव और जैन संप्रदायों से संबंधित हैं. चौसठ योगिनी, ब्रह्मा और लालगुआन महादेव, इन तीन मंदिरों का अपवाद है, जिनके निर्माण में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर का आंशिक रूप से प्रयोग किया गया है. सभी मंदिर तीन भौगोलिक डिवीजनों में अर्थात पश्चिमी, पूर्वी और दक्षिणी में बटें हुए है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत खजुराहो के स्मारक एक विश्व विरासत स्थल हैं.

कैसे पहुंचे

दिल्ली, भोपाल, रायपुर और मुंबई से नियमित उड़ानें उपलब्ध हैंण्‍ भारतीय रेलवे के नक्शे में अब खजुराहो रेलवे स्टेशन भी है. हरपालपूर (99 किमी), सतना (120 किमी) और झांसी (175 किमी) अन्य निकटतम रेलवे स्टेशन हैं. यह सड़कों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.

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