कमल और ज्योति की जोड़ी का फर्स्ट टेस्ट



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भोपाल.

मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनने के बाद ज्योति राधित्य सिंधिया का कल 6 जून को पहला बड़ा टेस्ट होने जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश आ रहे है। मंदसौर में उनकी बड़ी सभा है, वही मंदसौर जहां पिछले साल किसान आंदोलन के दौरान किसान मारे गए थे।


राहुल की इस सभा को मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चुनाव प्रचार अभियान का श्रीगणेश माना जा रहा है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव अभियान समिति संयोजक के लिए अपनी ताकत दिखाने का ये सबसे बड़ा मौका है। अगर राहुल की सभा में भारी भीड़ जुटती है और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने में कांग्रेस सफल रहती है तो नाथ औऱ सिंधिया को इस पहले बड़े टेस्ट में पास माना जाएगा। इसके विपरित अगर सभा भीड़ के लिहाज से अपेक्षित छाप नहीं छोड़ तो नाथ और सिंधिया के नेतृत्व पर उनके विरोधी तत्काल अंगुली और सवालिया निशान भी उठा सकते है। इसलिए सिंधिया और नाथ खेमा इस आयोजन को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाकर जुटा हुआ है। चारों कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षों को भी अलग-अलग क्षेत्रों में भेजकर भीड़ जुटाने की तैयारी है,हालांकि ये सबस जानते है कि जिस मंदसौर जिले में राहुल सभा करने आ रहे है वहां हाल ही में कांग्रेस की गुटबाजी एक नेता को प्रदेश समिति में लिए जाने के बाद खुलकर सामने आ गई थी। पूर्व सांसद मिनाक्षी नटराजन और उसके समर्थकों ने खिलाफत का झंडा बुलंद कर दिया था। इस्तीफे का दौर भी चला था, हालांकि बाद में कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व यह कहता नजर आया था कि सब कुछ सामान्य है और किसी के इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता।

नहीं दिखा आंदोलन का असर
इधर कांग्रेस किसानों के मुद्दे को हवा देने की कोशिश में थी औऱ चाह रही थी कि राहुल के मंदसौर आने से पहले मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ किसान लामबंद हो और माहौल बनाया जा सका। 1 जून से प्रस्तावित किसान आंदोलन के पांच दिन गुजर जाने के बाद भी उसका कोई असर अब तक नहीं दिखा है। भाजपा और खुद सीएम चौहान ने आंदोलन की घोषणा होते ही उस पर अपना पूरा ध्यान केंद्रीत किया और बताया जा रहा है कि अब किसानों में भी दो फाड़ हो गई है। एक गुट पूरी ताकत से भाजपा और सरकार के साथ खड़ा नजर आ रहा है औऱ उसने किसी तरह के आंदोलन-धरना प्रदर्शन में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया है। उलटा यह खेमा आम किसानों के बीच शिवराज सरकार की किसान हितैषी नीतियों का गुणगान करता फिर रहा है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस समर्थक किसान खेमा आंदोलन तो करना चाहता है पर बड़े नेतृत्व के अभाव और पुलिस की कथित सख्ती के चलते मैदान में नहीं आ पा रहा है।

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