यह है मान्यता
इस शिवलिंग को लेकर एक जनश्रुति प्रचलित है। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदारी प्रथा के समय पारागांव निवासी शोभासिंह जमींदार शाम को जब अपने खेत मे घूमने जाते थे, तो उन्हें खेत के पास एक विशेष आकृति नुमा टीले से सांड के हुंकारने (चिल्लाने) एवं शेर के दहाड़ने की आवाज आती थी।
गांव वालों के साथ खोजने पर वहां कोई शेर या सांड नजर नहीं आया। इसके चलते इस टीले के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ गई। बताया जाता है कि आज इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है, जो धीरे धीरे जमीन के उपर आती जा रही है।
मानते हैं अर्धनारीश्वर का स्वरूप
यह भी किंवदंती हैं कि इनकी पूजा छुरा नरेश बिंद्रनवागढ़ के पूर्वजों द्वारा की जाती रही हैं। बताया जाता है कि शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है, जिसके कारण लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं। साभार नई दुनिया
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