सम्पूर्ण लोकपर्व है भुजरियों का त्यौहार



उज्जैन.
भुजरिया को कजलिया भी कहा जाता है। यह त्योहार राखी के अगले दिन अर्थात भादौ महीने की पड़वा को मनाया जाता है। सम्पूर्ण महाकौशल प्रान्त, राजस्थान और बुंदेलखंड में मनाया जाता है।

इस त्योहार को सामाजिक समरसता का त्यौहार कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस दिन समाज का हर वर्ग एकरूप हो जाता है। स्त्री पुरुष, अमीर, गरीब, राजा और रंक सभी एक साथ मिलजुलकर एक साथ मनाते हैं।
श्रावण माह की अमावस्या के पश्चात सप्तमी को पूजा करके दो दोनो में पवित्र मिट्टी लाकर गेंहू के दाने बोये जाते हैं। रोज नियम से उनकी सिंचाई की जाती है। जिस दिन राखी होती है उस दिन भुजरिया को झूले में झुलाया जाता है उसे अगले दिन दोपहर बाद तक झूलों में झुलाया जाता है।

दोपहर बाद ही बस्ती के मुख्य चौक में ढोल ढमाके बजने लगते हैं। महिलायें भुजरियों की पूजा करके उन्हें सिर पर रख कर आ जाती है। आगे करतब दिखाते अखाड़े, भजन मंडली चलती है वहीं पीछे गीत गाती हुए महिलाओं का समूह। इस दिन समाज मे जातिभेद समाप्त हो जाता है। पुराने समय मे छुआछूत का भाव मिट जाता है। जुलूस किसी जल स्रोत नदी, तालाब के किनारे पहुंचता है। वहां महिलाएं भुजरियों को पानी मे धोकर साफ करती हैं वहीं पुरुष अपने शौर्य का प्रदर्शन करते है। जब सबकी भुजरिया साफ हो जाती है तो मन्दिर पहुंचते हैं। भगवान को अर्पित करते हैं। इसके बाद गले मिलकर एक दूसरे को भुजरिया का आदान प्रदान करते हैं। बड़ों के पांव छूने ओर छोटों को आशीर्वाद देने का क्रम देर रात तक चलता है। रिश्ते यथावत बने रहें ऐसी कामना की जाती है। “भैया के भैया बने रहियो।”

लोग दूरदराज से अपने काम काज छोड़कर इस दिन अपने परिवार समाज और बस्ती के लोगो से मिलने के लिए घर लौटते है। जिन का ताजा ताजा विवाह हुआ होता है वो जमाई राजा भी अपनी ससुराल में पत्नी, साले सालियों, पड़ोसियों के लिए गिफ्ट लेकर पहुंचते हैं। बदले में दामादजी को भी गिफ्ट और स्नेह से सराबोर कर दिया जाता है।

भुजरिया : ऐसी मान्यता है कि आज के दिन पानी जरूर गिरता है। भुजरिया इन्द्रदेब की सालिया हैं इसलिये इंद्र देव अपनी सालियों के साथ होली खेलने जरूर आते है।

इस प्रकार से भुजरिया त्याग और बलिदान का लोकपर्व है। जीवन भी भुजरियों की तरह ईश्वर को अर्पित होकर जनकल्याण के काम आए। आल्हा खण्ड में वर्णित भुजरियों की लड़ाई आज भी देहातों में बड़े चाव से गाई जाती है।

महंत रामेश्वरानंद अग्नि अखाड़ा ओम्कारेश्वर मप्र

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