follow us – https://www.facebook.com
आलीराजपुर। मनुष्य जन्म अनमोल जन्म है। हमें बिना मोल मिला है। इसका महत्व जान लो और कार्य ऐसा करो (ईश्वर भक्ति) की बाद में पछतावा न हो, कि समय रहते हम ये (भक्ति) तो कर ही नहीं पाए। ये बात आलीराजपुर जिले के सोंडवा में आयोजित भागवत कथा के चौथे दिन बुधवार को भागवत मर्मज्ञ प.कमल किशोर नागरजी ने कही। इस दौरान कृष्ण जन्म प्रसंग मनाया गया साथ ही आदिवासी नृत्य भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा। नागरजी ने बताया कि अपने नैन, मन, धन की गति पर नियंत्रण आवश्यक है। यदि ये सदगति में है तो निश्चय ही आप सफल है। ये सद्प्रयासों, सद्कार्यों में लगते है तभी आप सच्चे अर्थों में ईश्वर को प्राप्त करने में सफल हो सकते है। आप स्वयं अपने गुरु हो, आपका कार्य आपका गुरु है।
उसी से मार्गदर्शन लें। ये धन जो आपके पास है ये जिसने दिया है वह अच्छे उपयोग के लिए दिया है। इसका बुरा उपयोग आपके लिए भी बुरा साबित होगा। मन को समझाना रे चतुर नर….मन को समझाना। प्रभु चरन में ध्यान लगाना और कही मत जाना…चतुर नर मन को समझाना आदि भजन भी नागरजी ने सुनाएं। मन की गति को नापना संभव नहीं। इस पर नियंत्रण ही लगाया जा सकता है और इस पर नियत्रंण सत्संग के द्वारा ही लगाया जा सकता है और सत्संग में भी ये कार्य शब्द द्वारा किया जाता है। उन्होंने कथा के दौरान कहा कि जीवन उस गाड़ी सा नहीं है कि उसकी जगह कोई दूसरी मिल जाए। ये उस स्टेशन जैसा नहीं भी नहीं है की दूसरा मिल जाए। ये छुटा तो फिर मिलना मुश्किल है। सत्संग आपके बुरे कर्मों को दूर करता है इसलिए जहां कभी सत्संग मिले उसका लाभ लेना छोड़ना नहीं। अच्छे लोगों की संगत में भी रहोगे जो भगवत भक्ति करते है, आप भी तर जाओगे।
जैसे लोहे की कील पानी में डूब जाती है और लकड़ी में लगने के बाद तैरने लगती है। जैसे दूध मे मिलने के बाद पानी की कीमत बढ़ जाती है। सत्संग को ढोंग समझने वालों पर तंज कसते हुए नागरजी कहते है कि कुछ लोग कथा, पूजा, सत्संग में लगाएं पंडाल, विद्युत, फूलमालाएं लगाने को ढोंग कहते है। वे बताएं आपके खर्चीले शादी ब्याह, संगीत, राजनीतिक कार्यक्रमों में जो इस तरह होता है वो क्या है। क्या वो फिजूलखर्ची नहीं है। अरे भगवान का कार्य करने में कोई फिजूल खर्ची नहीं होती। शरीर पर दुख बड़े से बड़े सह लेना पर शरीर में दोष मत आने देना।
दुखों से पीछे मत हटना, क्योंकि उसके बाद ही सुख आता है। धन उधार ले सकते हो, पुण्य नहीं। पुण्य आपको ही कमाना पड़ेगा। पुत्र मोह पर तंज करते हुए संत नागरजी कहते है लोग पुत्र प्राप्ति की इच्छा करते है क्यों, क्योंकि वो उन्हें तार दे। आशीर्वाद लेना जैसे संस्कारों से मनुष्य को सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते है। इससे हमारे शरीर और मानसिक स्थिति में बदलाव होते है, जिसे विज्ञान ने भी सिद्ध किया है। जबकि हाथ मिलाने जैसे विदेशी संस्कार बीमारियों के वाहक साबित हुए है। उगते सूरज का सम्मान करों, गिरते पानी का आनंद लो, बहती हवा को महसूस करो और ईश्वर का धन्यवाद दो की उसने इतने महत्वपूर्ण तत्व आपको उपलब्ध कराएं।
LIKE FB PAGE https://www.facebook.com
कमेंट करें/ दोस्तों के साथ शेयर करें।