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संघ यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को जानने और पढ़ने में मैंने जीवन के कोई साढ़े तीन दशक दांव पर लगा दिये हैं। संघ की शाखा से लेकर बड़े आयोजनों तक में शामिल हुआ हूं। संघ के सरसंघचालक रहे बाला साहब देवरस, प्रो राजेंद्रसिंह (रज्जू भैया), केसी सुदर्शन और वर्तमान संघ प्रमुख डाॅ मोहनराव भागवत को देखने, सुनने का कई बार मौका भी मिला है। दावे के साथ कहता हूं आजतक संघ को चार लाइन भी नहीं समझ पाया हूं। दुनिया का यह सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन कोई भी काम आसानी से कर जाता है क्यों करता है इसका जवाब तत्काल खोजने से नहीं मिलता। जब इसका असर बाद में दिखाई पड़ता है तो दांतों तले जोर से अंगुली दबाने को जी करता है। इसलिए कहा जाता है – संघ यूं ही कुछ नहीं करता और यूं ही बहुत कुछ कर जाता है। काॅलेज जीवन में जब छात्र राजनीति करता था तब संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक ने मुझे खुद से जोड़ा था। वो आज भी मुझे छोटे भाई की तरह स्नेह करते हैं। मैं उनके साथ घंटों बैठता और संघ के बारे में बीसों सवाल पूछता। वो बोलते बहुत ही कम और मेरे सवालों पर मुस्कुरा देते। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा – वो खुद और कई बड़े पदाधिकारी यह अब भी समझने की कोशिश में हैं संघ आखिर है क्या। मुझे आश्चर्य हुआ इतना विद्वान व्यक्ति जो अपना घर छोड़कर युवा अवस्था से संघ कार्य में जुटा है वही संघ को अब तक समझ नहीं पाया है। उनकी इस बात पर मोहर लगाता भाषण दिया संघ प्रमुख डाॅ भागवत ने। 6 जनवरी 2013 यह तारीख थी शायद। इंदौर में सुपर काॅरिडोर पर मालवा प्रांत के हजारों स्वयंसेवक जुटे थे संघ की गिनती के मुताबिक एक लाख बाइस हजार। संघ प्रमुख ने कहा था – संघ को दूर से देखेंगे तो गलती होगी। अभी यहां शारीरिक हुआ अगर कोई इसे देखेगा तो लगेगा संघ कोई व्यायामशाला है वहां लाठी चलाना सिखाया जाता है। अभी गीत हुआ, घोष हुआ इसे देख कोई नया व्यक्ति सोच सकता है संघ संगीतशाला है। वास्तव में ऐसा है नहीं। जब तक हम संघ में गहरे नहीं उतरेंगे संघ और उसके काम को समझने में गलती की गुंजाइश बनी रहेगी। खैर, भारत के प्रथम नागरिक रहे (पूर्व राष्ट्रपति) प्रणव मुखर्जी गुरुवार को नागपुर में संघ के मंच पर पहुंचे। संघ प्रमुख डाॅ भागवत के साथ उन्होंने मंच साझा किया। इसे लेकर टीवी चैनलों पर कल खूब विश्लेषण हुए और आज अखबारों के पन्ने रंगे पड़े हैं। प्रणव दा का पूरा राजनीतिक जीवन कांग्रेस और धर्मनिरपेक्षता को समर्पित रहा ऐसे में उनका संघ के मंच पर जाना कथित धर्मनिरपेक्ष ब्रिगेड के लिए संताप सा बन गया। मुंह फुलाया गया, चैनलों पर जोर जोर से चिल्लाया गया और अखबारों में कलम तीखी की गई। इस देश में कुछ अति विद्वान और स्वयंभू बुद्धिजीवी हैं जो भगवा रंग देख भड़क जाते हैं उन्होंने कल रात भोजन या कहें डिनर पर थाली सामने से हटा दी होगी। उनके गले से एक भी निवाला नीचे नही उतरा होगा। हालांकि प्रणव दा ने संघ के मंच पर खड़े होकर वही कहा जो वो कहना चाहते थे। अब सवाल यह कि संघ ने प्रणव दा को क्यों अपने मंच पर बुलाया तो इसका जवाब कोई और नहीं वक्त ही सबसे बेहतर दे पाएगा। वैसे भी संघ कुछ भी यूं ही नहीं करता। हां, संघ ने ऐसा करके जरूर कुछ लोगों का चैन छीन लिया है, नींद उड़ा दी है और दुनिया हिला दी है ये फिलहाल दिखाई दे रहा है। और यह भी बता रहा है कि देश के इतिहास का यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था जो संघ ने सामान्य रूप से कर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारीजी की फेसबुक वाल से साभार…
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